रविश चंद्र "भारद्वाज"
Thursday 2 January 2014
दो बात सोचकर दिल को कहा कि मोहब्बत मना है
इकरार कर या इनकार हो तेरा जिँदगी बदलनी हीँ है
कैसे बताता अपना दर्द किसी को
क्या बयान करता दास्तान अपनी
जहाँ भी नजर गयी गरीब रवीश की
हर शख्स को दर्द से अमीर पाया
उम्रकैद की सजा सुना दी मेरी मोहब्बत ने
वरना कत्ल कुछ और दिल भी होते इस चेहरे से
सजधज के आए थे मेरे नजर के सामने
ख्वाब पूरे होते गए मेरे नजर के सामने
आँखोँ ने देखा जी भर मेरे नजर के सामने
हम लूटते गए हाय मेरे नजर के सामने
क्या मिला क्या खोया इस बीते साल मेँ
कौन पराया कौन अपना हुआ बीते साल मेँ
क्या गम क्या खुशी पायी इस बीते साल मेँ
क्या याद रहा क्या भुल गये बीते साल मेँ
आओ
अपनोँ को याद करेँ
थोड़ा तो प्यार करेँ
अड़चनो को पार करेँ
खुशी सबके द्वार करेँ
नये साल का आगाज करेँ....
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