Tuesday 17 June 2014

मैंने कब कहा
मैं तुम्हारा हूँ
तुम्हें चाहता हूँ
तुम्हारे संग हूँ
तुमसे खुश हूँ
तुम मेरे हो
मेरी ख़ुशी हो
मेरी चाहत हो 

मैंने तो बस इतना कहा 
मैं तुम हूँ तुम मैं हो
लो भाई भोर हो गयी जल्दी से उठ जाओ


आलस छोड़ो जल्दी अब काम मेँ लग जाओ


नहा धोकर सब प्रभू समक्ष सीस नवाओ 


बच्चोँ को प्यार कर स्कूल छोड़ के आओ


फिर अपने अपने काम पे हँसते हुये जाओ

लो भाई भोर हो गयी जल्दी से उठ जाओ
कर्ज समझ हर फर्ज को चुकाते जाओ


जो दूर हो गये उनको याद करते जाओ


जो करीब हैँ उन पर प्यार लुटाते जाओ


जीवन की पहेली को यूँ सुलझाते जाओ
तुममेँ जगता तुममेँ सोता तुममेँ हँसता तुममेँ रोता तुममेँ पाता तुममेँ खोता 


क्या हो तुम मेरे मैँ जानूँ कैसे तुममेँ ही मैँ सदा होता
प्यार का दीप हर दिल मेँ जले तो क्या बात हो


कोई ना तड़पता दिल हो यहाँ तो क्या बात हो


कहते हैँ आशिक कि हम हुस्न भी फिदा हैँ यारोँ


पैमाना ए नशा हर आँख से छलके तो क्या बात हो

कद्र सबके हक की हो यहाँ तो क्या बात हो


रोटी सबको बराबर मिले तो क्या बात हो


नीँद नहीँ आती जब मोहब्बत करते हैँ लोग


सबको इश्क का रोग लगे यहाँ तो क्या बात हो


जहान मेँ इमारतेँ ऊँची और सोच नीची हो गयी हैँ


गलियोँ की खूबसुरती काँच की खिड़कियोँ मेँ कैद हो गयीँ हैँ.....
तेरी यादोँ को समेटे आज सदियाँ गुजर गयीँ


तेरी बातोँ को सुने आज घड़ियाँ गुजर गयीँ


एक आहट सी सुनी जो मेरी रुह नेँ अकेले मेँ


मेरे सामने से बचपन की वो गलियाँ गुजर गयीँ
तबीयत क्या पूछते हो मेरा जब दवा तुम हो


क्या माँगू खुदा से तुम बोलो जब दुआ तुम हो
मेरे दिल को मोहब्बत का दुकान समझने वाले

इसके खरीददार और भी है जरा समझना था तुम्हेँ