Saturday 3 May 2014

किसका सब्र करेँ अब किसकी खैर मनायेँ


जमीर बिक रहा सरेआम बाजार मेँ


खुशियाँ दहलीज पे आते अब शरमायेँ


चंद सिक्कोँ से क्या बच्चोँ को खिलायेँ


बिकते बेटे तेरे कोड़ियोँ की भाव मेँ


खून के रिश्ते हम अब कैसे निभायेँ


हार कर लौट माँ तेरे चरण मेँ हीँ आयेँ


दे आशीष अपने भटके हुये बच्चोँ को


शायद हम भी आजाद भगत कहलायेँ


तुझसे हैँ जन्मेँ तुझमेँ ही मिल जायेँ

Tuesday 29 April 2014

चाय नहीं पिलाता है पर कप धोने जाता है

जाने वो  किसको क्या कैसे पिलाता है

ऐसा क्यों होता  है मुझे समझ ना आता है

जाने वो क्यों बार बार धोने जाता है 

जब भी आऊँ तुम्हारे घर मन खिल जाता है

अपने हाथों से चाय बनाने का मजा आता है

अकेले मेरा  मन क्यों नहीं लग पाता है

तुम्हारे चेहरे को याद कर रो रो जाता है 

पर एक बात मेरे दिमाग में सेट नहीं हो पाता है

चाय नहीं पिलाता है पर कप धोने जाता है

जाने वो  किसको क्या कैसे पिलाता है

ऐसा क्यों होता  है मुझे समझ ना आता है

जाने वो क्यों बार बार धोने जाता है 

Monday 28 April 2014

जीवन एक दौड़ ..............

जीवन  एक  दौड़ 

जीवन  बन  गयी  है  एक  दौड़ 

दौड़  सुबह  से  शाम  तक  और  शाम  से  रात  तक  की  दौड़ 
बस  दौडम  दौड़ 
वो  भी  दौड़  रहा  है , हम  भी  दौड़  रहे  हैं 
मैं  भी  शामिल  दौड़  में
बस  दौडम  दौड़ 

जनमे  ही  क्योँ  ?

शामिल  क्योँ  इस  दौड़  में ?
खड़ा  क्योँ  में  इस  दौड़  में  ?
मंज़िल  का  भी  क्यूँ  पता  नहीं ?
बस  क्यूँ  है  यह  दौडम  दौड़ .


थोड़ा  रुक  ,ठहर  ,साँस ले 

अपनों  से  मिल  ,उनके  जीवन  की  भी  जान  ले 
कुछ  उनकी  सुन  कुछ  अपनी  सुना 
घडी  भर  रुक  आँख  तो  मिला ,

तू  किसी  से  डर के  तो  नहीं  भाग  रहा  ?

कोई  नहीं  है  तेरा  इस  भीड़  में ,  तो  किसे  तू  खोज  रहा  ?
कही  तू …सब  से   आगे  निकलने  के  लिए  तो  नहीं  दौड़  रहा ?
इस  भीड़  में  अपनों  के  पदचिन्हों  को  तो  नहीं  टटोल  रहा  ?

थोड़ा  रुक  ,ठहर  ,सांस  ले 

पीछे  मुड़ के  तो  जांच  ले 
 क्या  पाया  क्या  छूटा  इस  दौड़  में 

घर  की  शांति  कहाँ  है ?

बच्चों  का  बचपन  कहाँ  है ?
प्रिय  प्रियसी  का  प्यार  कहाँ  है ?
माँ  की  लोरी  कहाँ  है ?
पापा  की  छड़ी  के  वो  मर  कहाँ  है ?
और  फिर  टॉफ़ी  की  वो  घुस  कहाँ  है 

कसमें  तो  हर  मोड़ पर  खाई थी  तूने 

बेटा बन फ़र्ज़  निभाउंगा 
प्यार  पर  मिट  जाऊंगा 
बच्चों की  किलकारियों  पर  वारी  जाऊंगा 
दोस्ती  को  न  भूल  पाउँगा 
जमाने   में   नाम  कमाऊँगा 

बस .... सब  भूल  गया 

हर  एक  फ़र्ज़  भूल  गया 
और  शामिल  हो गया  इस  दौड़  में 

थोड़ा  रुक  ,ठहर  ,सांस  ले 

सपनो  के  बिखरे  पन्नो  को  उठा 
कागज़  ही  सही  पर  फिर  से 
अपनों  के  लिए  एक  जगह  सजा 

इस  दौड़  को  कुछ  विराम  दे , 

अपनों  से  मिल 
कुछ  उनकी  सुन  
कुछ  अपनी  सुना 
बस पूछा था हाल तुम्हारा और तुम मेरा हाल बन गए 

बस हुई थी थोड़ी बातें और तुम मेरी हर बात बन गए

बस बुलाया था मिलने मुझे और तुम हमसे मिल गए

बस जिन्दा था कल तक और आज तुम ज़िन्दगी बन गए 
यादोँ के सफर को यूँ तय किया हमने


गम को छिपा दुनिया से कदम बढाये हमने


खुशियोँ के पड़ाव पर हँसा किया हमने


मंजिल तेरे दिल की बस पा लिया हमने


अब थक गये हैँ शायद पैर जो चलते मेरे


सर तेरे आँचल मेँ रख चैन पाया हमने


एक और सफर हमसफर संग चलना है हमने
बस एक ख्याल दिल से निकाल नहीँ पाता हूँ


तुमको एक पल के लिये भूल नहीँ पाता हूँ


साथ रहने की कसम खायी थी कल हमने


तुमको तो तब से खुद मेँ हँसता हीँ पाता हूँ


उदासी के अपने बादल बड़े नासमझ हैँ


खुशियोँ की धीमी सी बारिश शुरु है


जमीन से आसमाँ तक तुम्हेँ पाता हूँ


तुमको तो तब से खुद मेँ हँसता हीँ पाता हूँ