भीड़ में अकेला राहगीर जा रहा था
भीड़ थी बहुत पर वो अकेला
यूँ तो साथ दुनिया चल रही थी
वो इस लोगो की भीड़ में पर अकेला
उसमें विस्वास तो इतना भरा था
भीड़ में अकेला गर्दन उठा कर चल रहा था
हवा ने सोचा क्यो ना मैं विस्वास को दिगाऊँ
मेरे अस्तित्व को दर्शाऊँ
झोंका अपना जो मैंने हिलाया
भीड़ तितरी भीड़ बीतरी
लोगो को दिशा ढूंढते पाया
पर वो अटल अमित शांत अडिग
राह में चलता गया
मैं हवा हुई खूब हैरान और परेशान
मेरी ताकत पर सब सर झुकाते है
मेरे क्रोध पर सब हिल जातें हैं
हाँ हैं मुझे घमंड मुझपे
विनाशकारी शक्तियो से परिपूर्ण मैं
हाँ मुझ में है ताकत राहें बदलने मिटाने की
मेरे दम पर दुनिया सारी चलती है
फिर इस राहगीर की गर्दन क्योँ
आकाश सी ऊँची और विशाल दिखती है
राहगीर सुन सारी बातें मुस्कराया
अपनी राह पर कदम बढ़ाया
बोला मुझमें ना घमंड है
ना मुझमें शक्ति अपार है
मुझमें सिर्फ जीवन जीने की प्यास
कुछ कर गुजरने की आस
और मेरे इस भीड़ पर विश्वास है
मैं इस भीड़ में अकेला नहीं
पूरी कायनात मेरे साथ है
पत्तों की सरसराहट
पथ का धुल
मेरी सोच मेरा व्यवहार
और अपनों का प्यार
दिशा दिखाती ये सूर्य के रोशनी
और मेरे जीत के मंजिल के नजदीक
आने की खुश्बू भीनी भीनी
इस भीड़ में लोग भले हीं अलग अलग लगतें हैं
पर उसी भीड़ के कदम मेरे साथ चलतें है
पर उसी भीड़ के कदम मेरे साथ चलतें है