Saturday 19 April 2014

दुश्मने ए दिल भी हमेँ याद करते हैँ

शायद इसी को हम मोहब्बत कहते हैँ
मेरा मन हो तो मेरी मर्ज़ी हीं मानो

मेरा साया हो तो मुझे साथ हीं मानो

ख़ुशी हो मेरी तो अपने को खुश मानो

और क्या कहूँ मुझे बस अपना हीं मानो...............
क्यूँ मन मेरा वापस जाने को उतावला है
अपने बचपन की ओर खिँचा चला जा रहा है
कुछ तो छूटा है उस बचपन मेँ उसका
आज मेरी ना सुनता नजर आ रहा है
कोई तो है जो आवाज देकर बुला रहा है
कुछ अधूरा ख्वाब पूरा करने जा रहा है
अब वो भी हार गया अपना दिल अपना
शायद अपनी जीत की ओर बढा जा रहा है
विश्वास अचल उसका हुआ जा रहा है
मेरा मन तुम्हारे मन से मिलने आ रहा है
Shayad meri ladai wahi hai

Saans lena sikh rahaa hun

dil ki dhadkan sun raha hun

duniya ko dekh raha hun

logon ki sun raha hun

mujhe to yeh bhi nahin pata

ki aur kitna jina hai mujhe

aur kitna marna hai mujhe

Shayad meri ladai wahi hai................
धीरे धीरे उसने मेरे जीने के अंदाज़ बदल दिए
दोस्त थे चंद अपने वो भी कहीं जाने खो गए 

जाने कितने बदलाव आये और बस चले गए
हम जहाँ से चले थे वहीँ के होकर बस रह गए

अजीब सी चाहत थी दुनिया को जीत जाने की 
शायद हर जीत को वो मेरी हार बना चल दिए

अब चाहत ना रही है मुझे कुछ और पाने की 
बेवजह सीने में दिल बस दहकता रहता है

बस प्यास लगती है बड़ी जोरों की आत्मा को
पूछता हूँ जब भी अपनी बर्बादी की वजह

कोई साया सा अपना दिख जाता है आँखों को
बस कह देता हूँ यूँ हीं की तुझसे बड़ा प्यार है

और प्यास बुझ जाती है मेरे आत्मा की यूँ
तुझसे मिलना है मुझे अकेले में किसी दिन

अपने खुदा को गवाह बना के आखिरी बार
शायद तुम हीं तो वो नहीं जो मेरा अपना है