Saturday 23 November 2013

तुमसे मिलना या ना मिलना अजीब है 
मिलकर तुमसे जुदा हो जाना अजीब है 
जुदा रहकर तुमसे मिल जाना अजीब है
अपनी गिली जुल्फोँ को झटका ना करो 
उनकी साये मेँ दिल को पनाह मिलती है 
गिरती हैँ जो ओस की बुँदे चेहरे पर 
सोयी हुई साँसो मेँ बस आग लगती है

Friday 22 November 2013

जी गये हैँ तेरी एक झलक पाकर
मर जायेँगे यकीनन तुझको पाकर
बादल कब बन बरसे तुम
भीग गया कब ये दिल मेरा
तपते जीवन की प्यास बुझी
ठंडक तुम्हारी कब होँठो की पाकर
जी गये हैँ तेरी एक झलक पाकर
मर जायेँगे यकीनन तुझको पाकर

छोड़ चले सब अपने राहोँ मेँ
खोता गया मैँ खुद राहोँ मेँ
बाँहेँ थामी तुम्हारी बाँहोँ ने
खो गये हम तुम्हारा साथ पाकर

जी गये हैँ तेरी एक झलक पाकर
मर जायेँगे यकीनन तुझको पाकर

जाने तुमसे मुझे कब प्यार हो गया ,
जीने को मानो मकसद सा मिल गया
जीते थे दुनिया मेँ दरबदर , 

साँसोँ को मानो एक घर सा मिल गया
रात होती थी अमावस की , 

आँखोँ को मानोँ कोई चाँद मिल गया
चुभती थी आवाज भी अपनी 

मानो आज कानोँ को संगीत मिल गया

हार गया था इस दुनिया से
कदमोँ का भी साथ ना रहा
हाथ दे रहे थे अब जवाब

जाने कब तुम्हारा साथ सा मिल गया
जीने को मानो मकसद सा मिल गया

Wednesday 20 November 2013

बादल को बूँदो की भला प्यास कैसी
सूरज को रोशनी की भला आस कैसी
समायी तू साँसो मेँ मेरी जान जब से
तुझसे मिलने की ये लगी आस कैसी

Monday 18 November 2013

लोग पुछते हैँ हाल तो बेहाल हो जाते हैँ
शायरी अर्ज करता हूँ तो घायल हो जाते हैँ
फौलाद सा जिगर लेके जाता बाजार जब भी
गम की दुकानोँ मेँ सामान कम पड़ जाते हैँ
बिन तुमसे मिले फिर आज वापस जा रहा हूँ
एक उम्मीद लिये आँखोँ मेँ वापस जा रहा हूँ
प्यारी यादेँ दिल मेँ बसा वापस जा रहा हूँ
तुम्हारे दिल मेँ एक घर बनाये जा रहा हूँ
बंदर पेड़ोँ पे उछल रहे हैँ
कुत्ते जी भर के भौँक रहे हैँ
चिड़िया मस्ती मेँ गा रही है
बिल्ली आपके छत आ रही है
आप पार्क मेँ घूम जा रहे हैँ
हनुमान चालीसा सुने जा रहे हैँ
मन हीँ मन मेँ डरे जा रहे हैँ
ट्रेक सूट जुते पहन घुमे जा रहे हैँ
भविष्य की चिन्ता मेँ डुबे जा रहे हैँ
घर पहुँचिये जनाब
बंदर आपके छत नाच रहे हैँ
कुत्तोँ ने बाग गंदा कर दिया
चिड़िया कुर्सी बीट कर गयी
बिल्ली किचन मेँ दूध पी गयी
आप घुमेँ डरेँ चिन्ता करेँ
आप इंसान हैँ
हर रंग जमाने का देखा बचपन का रंग सुहाना था
टूटते थे खिलौने हाथोँ मेँ हमारा प्यार पर दीवाना था
मनमानी कर जाते अपनी पर नाराज ना दोस्ताना था
भुलने का डर नहीँ था हमेँ बस यादोँ का फसाना था
चलती थी बस अपनी ना कि किसी का चलाना था
रुठ कर खुद हीँ मन जाते वो ऐसा हमारा जमाना था
एक जमाना ऐसा प्यारा बचपन अपना जमाना था