Saturday 28 December 2013

शायद तुम हीँ हो पहचान मेरी जान

वरना रिश्ते कई हैँ अपना नाम देने को
जिँदगी की शर्तेँ कम थीँ क्या जो मोहब्बत की बात करने लगे

मजबूरियाँ कम थी क्या जो उसे निभाने की बात करने लगे
चलो आज अपनी मोहब्बत को घर के 

एक कोने मेँ पड़े आलमारी मेँ बंद कर आयेँ 


तुमने जो तड़पने से मना किया है 


तुम्हारी बात को कैसे नकार जायेँ


बस एक गुजारिश है तुमसे ये मोहब्बत


चाभी मेरे पास हीँ रहने देना आलमारी की


क्या पता हम पहले की तरह तड़प जायेँ
वक्त यूँ बड़ा बेरहम सा रहा है मेरे साथ

अपनोँ की तलाश मेँ हम वक्त के साथ ना रहे

Tuesday 24 December 2013

भीड़  में  अकेला  राहगीर  जा  रहा  था
भीड़  थी बहुत पर  वो  अकेला
यूँ  तो  साथ  दुनिया  चल  रही  थी
वो  इस  लोगो  की  भीड़  में  पर  अकेला

उसमें विस्वास तो  इतना  भरा  था
भीड़  में  अकेला  गर्दन  उठा  कर  चल  रहा  था
हवा  ने  सोचा  क्यो  ना  मैं  विस्वास  को  दिगाऊँ
मेरे  अस्तित्व  को  दर्शाऊँ
झोंका अपना जो मैंने  हिलाया
भीड़ तितरी भीड़  बीतरी
लोगो  को  दिशा  ढूंढते  पाया
पर  वो  अटल  अमित  शांत  अडिग
राह  में  चलता  गया

मैं  हवा  हुई  खूब  हैरान और  परेशान
मेरी  ताकत  पर  सब  सर  झुकाते  है
मेरे  क्रोध  पर  सब  हिल  जातें  हैं
हाँ  हैं  मुझे  घमंड मुझपे
विनाशकारी  शक्तियो  से  परिपूर्ण  मैं
हाँ  मुझ  में  है  ताकत  राहें  बदलने  मिटाने  की
मेरे  दम  पर  दुनिया  सारी  चलती  है
फिर  इस  राहगीर  की  गर्दन  क्योँ
आकाश  सी  ऊँची  और  विशाल  दिखती  है

राहगीर  सुन  सारी  बातें  मुस्कराया
अपनी  राह  पर  कदम  बढ़ाया
बोला  मुझमें  ना  घमंड  है
ना  मुझमें  शक्ति  अपार  है
मुझमें  सिर्फ  जीवन  जीने  की  प्यास
कुछ  कर  गुजरने  की आस
और  मेरे  इस  भीड़  पर  विश्वास  है
मैं  इस  भीड़  में  अकेला  नहीं
पूरी  कायनात  मेरे  साथ  है
पत्तों  की  सरसराहट
पथ का  धुल
मेरी  सोच  मेरा  व्यवहार
और  अपनों  का  प्यार
दिशा  दिखाती  ये सूर्य  के  रोशनी
और  मेरे  जीत  के  मंजिल  के  नजदीक
आने की  खुश्बू  भीनी  भीनी

इस  भीड़  में  लोग भले हीं अलग अलग लगतें  हैं
पर  उसी  भीड़  के  कदम  मेरे साथ  चलतें  है
पर  उसी  भीड़  के  कदम  मेरे साथ  चलतें  है 
क्यूँ थक जाते हो चलते राहोँ मेँ

ये आसमाँ जब तुम्हारा है


क्यूँ हार जाते हो अपनी साँसोँ से


ये जीवन जब तुम्हारा है


क्यूँ जलते हो अपनी हीँ चिता मेँ


ये वक्त जब तुम्हारा है


क्यूँ तड़पते रहते हो प्यार मेँ


ये रविश जब तुम्हारा है
ख्वाब को पनाह मिली अश्कोँ मेँ

रात तेरे दहलीज पर रोते रहे


आँखे ना खुलती हैँ नादान दिल


तेरी रुह ने पनाह ली अश्कोँ मेँ
रात भर आँखोँ मेँ तेरा इंतजार रहा

ख्वाब तेरा भी कुछ खफा सा रहा
मरना नहीँ अब जीना है हमेँ

दुनिया के रश्मोँ मेँ उलझे


कुर्बान होते मन के सपने


रात भर हम रहते तड़पते


दिन के उजाले मेँ भटकते


आँखो से बस रोते रहते


जुबान को खामोश रखते


हाथोँ की बस ताकत खोते


पल पल मरना अब नहीँ हमेँ


मरना नहीँ अब जीना है हमेँ

Sunday 22 December 2013

काश वो इतने समझदार होते
मेरी नासमझी को समझे होते
ऐसा होता तो हम उनके होते
और हम उनके कभी ना होते
जिँदगी तू नाराज नहीँ मुझसे
बंदा हीँ शायद खफा खफा है
मंजिलोँ को तलाशता ये शख्स
खुद के चेहरे से जुदा जुदा है
कौन तेरे शहर मेँ बदनाम खुदा
किसका तेरे शहर मेँ है नाम खुदा
जहाँ भी पड़ी नजर तेरे इस बंदे की
हो रहा सब तेरे हीँ नाम से खुदा
किसी के दिल से दूर हुये
किसी के दिल के पास हुये
मोहब्बत के सफर को
यूँ मेरे दिल ने तय किये
सो जाओ जान रात हो गयी
मेरा सफर अभी बाकी है
सपने देखो जान रात हो गयी
मेरा सपना अभी बाकी है
रात तुमसे मुलाकात हो गयी
आत्मा मिलन अभी बाकी है
दुनिया सारी बेजान हो गयी
जान मेरा होना अभी बाकी है
गुलाब आप तो बागोँ को क्या पूछुँ
कविता आप तो किताबेँ क्या पुछूँ
मंजिल आप तो सफर को क्या पुछूँ
मिलना आपसे तो जुदाई क्या पुछूँ
सारा सामान
सारे शरीर
सब एक हुये
भारतीय रेल
के साधारण
डिब्बे मेँ
सारी बातेँ
घुलमिल गयीँ
ट्रेन हिलती
डोलती
पहुँची स्टेशन
दो लोग विदा
बीस चढ गये
चाय वाला
पकौड़ी वाला
हालत पस्त
खिड़की पर
पैसा रखो तो
चाय मिलेगी
खुशी ज्यादा
अंतराछी चालू
म से शुरु

Tuesday 17 December 2013

बहुत देखा इस जमाने को बदलते यारों 

आज क्यूँ ना जमाने को हीं बदल जाएँ

राहें बहुत देखी चलते चलते हमने यारों 

आज क्यूँ ना खुद का एक राह बनाएँ 

कब तक रहें तक़दीर के भरोसे यारों

आज अपना खुदा हीं ना क्यूँ बदल जाएँ

बस एक गलती करना बाकी है इस बेरहम दुनिया में

गुनाह अपने खुदा को भी कबूल हो जाए ये दुआ मेरी

तुझको पा लेना कहना कुछ छोटी बात इस दुनिया में

अपने आगोश में मरने की इजाज़त दे ऐ रूह तू मेरी 
तुम्हारी मोहब्बत को बस याद करते हैँ

भुलने के अंदाज तुमने सिखाये हीँ नहीँ


तुम्हारी हर अदा पर आज भी मरते हैँ


मरने का तरीका तुमने बताया हीँ नहीँ
कौन सा दर्द छुपाना चाहते हो मुझसे 

क्या दिल मेँ छुपाना चाहते हो मुझसे


आसमान तेरा मैँ , जमीन भी तेरा मैँ


कितना दूर जाना चाहते हो मुझसे

Monday 16 December 2013

काली स्याही मेरे दिल का अँधेरा है

तुम्हारे दिल के पन्ने मिल जाएं बस 

ज़िंदगी की शायरी पूरी हो जाए बस 

तुम बिन ये शायर अभी अधूरा  है  
जाने क्यूँ वो शाम से कुछ खफा सा है 

नींद आती आसमान को चाँद खफा  सा  है 

Saturday 14 December 2013

बहुत खुबसूरत एक ख्याल आया है

मुस्काता हुआ वो आज मेरे सामने आया है


दिल मेँ सोये अरमान जग से गये हैँ


शायद वो मेरा साया बन आया है



जरा सी छुअन पर उसे खुद से सिमटता पाया है


बाँहोँ मेँ आकर वो मेरी आँखो से शरमाया है


सोचता हूँ जी भर के प्यार कर लूँ उसको


प्यार आज पूरे हौसले के साथ मेरे पास आया है

Thursday 12 December 2013

फटे पुराने कोट 

अंदर वाली जेब


एक श्वेत श्याम 


फोटो निकला 


रंगीन यादेँ 


ताजा हो गयीँ

Monday 9 December 2013

आँख दी तुने खुदा तो ये भी रोतीँ हैँ

जिँदा हूँ इसलिये दर्द भी होता है


मोहब्बत दी तो तबाही भी होती है


चेहरा ना दिखे उनका तो दिल भी तड़पता है


सब अपने फर्ज बखूबी अदा कर रहेँ हैँ


फिर भी खुदा तू ना जाने क्यूँ रुठा है
मेरे नजरोँ को भला कोई क्या पढ पाएगा

जो पढना भी चाहे तो बस धोखा हीँ खाएगा


दिल मेँ यूँ छुपा लिया है तुमने मेरे दर्द को


जमाना इन अश्कोँ की कीमत क्या जान पाएगा

Sunday 8 December 2013

हवाओँ का रुख कुछ यूँ है रविश
सपनोँ को भी अब पर लगने दो
वोट देकर सो मत जाना रविश
सोयी आँखोँ को हर पल जगने दो
देखना कोई राजा न बन जाए
खुद दिल को राजा अब बनने दो
नजर ना लगे किसी की नजर से
स्वतंत्रता अपनी ना अब खोने दो
सफर बड़ा सुहाना
यादोँ का फसाना
बस की रफतार
दो चार पड़ाव
एक पड़ाव पे वो भी आये
बैठ गये बगल मेँ हमारे
पुछने की क्या जरुरत थी
टिकट उनकी सीट उनकी
आधा चाँद हमारे साथ था
रात गुजर जाए आराम से
सोचते हुये आँख लग गयी
चाँद छुप गया
मेरा पड़ाव निकल गया
उनका पड़ाव मेरा पड़ाव
काली अँधेरी रात
बहुत दूर जाना है
मंजिल बहुत दूर
पर चलते जाना है
हाथ रखना थामे
दिल धड़कता रहे
साँसोँ का सहारा
देखो छुटने ना पाये
मंजिल मिल जाएगी
खुशियाँ लौट आएगी
कलियाँ मुसकाएगी
बहारेँ फिर आएगी
बिखरी जिँदगी को
थोड़ा सजाना है
मंजिल बहुत दूर
पर चलते जाना है
चाहत कुछ ऐसी है खुदा कि
किसी दोस्त का ना साथ छुटे
ना कोई दुश्मन गम मेँ डूबे
छोटी सी जिँदगी अपनी है 

कर्जोँ मेँ डूबी हुई 
हर किसी को फर्ज निभाने का हक मिले

Friday 6 December 2013

तुम्हारे दिये दुख को तकिये के नीचे रख सोता हूँ

आँसूओँ से चादर को भीगो कर के ओढ सोता हूँ


साँसोँ को पंखे से लटका कर के सोता हूँ


अपनी सुबह जाने कब आएगी 


दुख का कर्ज चुकाने के सपनोँ के साथ सोता हूँ

Thursday 5 December 2013

बहुत खुबसूरत हो तुम आ जाओ नजर 

तो जन्नत की दुआ कबूल करे खुदा 

देख लो एक नजर भर के बाँहोँ मेँ 

तो काफिर बनना हमेँ माफ करे खुदा
बड़े प्यार से पाला था गले लगा के गम मेरे

अब तू भी गम दे गया क्यूँ तू उसका हो गया
चलो कुछ नया करेँ
विक्षिप्त सा वो मेरा आकाश

निराश रोते मेरे वो तारे


मुरझा गया वो मेरा चाँद


खो गयी वो तेरी मेरी रात


सुबह का सूरज भी बेचैन


किरणेँ गिरती धरती पर


छाये खोते बाग के पेँड़


जलती झुलसती ये धरती



शायद कुछ बात है

छुटता कोई हाथ है

Wednesday 4 December 2013

हर शाम गुजरती है मयखाने मेँ हमारी
हर शाम ठहरती है इंतजार मेँ तुम्हारी
पीला देतेँ हैँ दोस्त तेरी कसम देकर
साकी तू बन तो कोई बात बने हमारी

Tuesday 3 December 2013

कुत्ता भिखारी का

भिखारी भीख का

देनेवाला सौदे का

सौदे वाले सैलरी का

सैलरी वाले मुनाफे का

मुनाफे वाले बिक्री का

बिक्रीवाले सरकार का

सरकार भिखारी का


इंतज़ार या योजना 
उसने कहा है वो कल से हमेँ टूट कर चाहेगा

डरता हूँ कल तक उनका नशा ना उतर जाए


नशा उतर जाए तो भी कोई बात नहीं

आरज़ू दिल कि पूरी हो जाएंगी


उनकी जुल्फों तले बस जान  निकल जाए

Monday 2 December 2013

इंतज़ार

कोई  मुझे  बताये
मुझे  किसका  इंतज़ार  है 
जिससे  मिलने  को  मन  बेक़रार  है 

इंतज़ार  कल  भी  था  आज  भी  है
आँखों  में  चूभन  कल  भी  थी  आज  भी  है 

क्योँ  खत्म  नहीं  होता  यह  इंतज़ार 
सुबह  से  शाम  का 
और  शाम  से  सुबह  के  होने  का  इंतज़ार 

लेकिन  इस  इंतज़ार  में  भी 
है  एक  नई  उम्मीद  सी  छाई 
उम्मीद  के  साथ 
चिंता  की  नई  लकीर  भी  गहराई

इन  चिंता  की  लकीर  में 
कोई  मुझे  बताये
मुझे  किसका  इंतज़ार  है
जिससे  मिलने  को  मन  बेक़रार  है

लेकिन  इस  इंतज़ार  में  भी 
है  एक  नई  ख़ुशी  सी  छाई 
ख़ुशी …ऱात  की  काली  चादर  के  उड़ने  की 
और  सुबह  की  नरम  धुप  की  चादर  के  बिछ  जाने  की 

इन  चादरों  के बदलने  में 
कोई  मुझे  बताये
मुझे  किसका  इंतज़ार  है 
जिससे  मिलने  को  मन  बेक़रार  है 

तक़दीर बनाने वाले सुन ले जरा जाते  हुए

जिगर का हौसला भी तेरे रहमो करम से है 
बयान  क्या  करे  दिल  में  छिपे  गम  का 

खुद  भी  परेशान  अपना  हमसे  हो  गया 

सोच  इश्क़  में  टूट  कर  शायद  में  रोऊँ 

यहाँ  हर  दिन  बंदा  जवान  होता  गया 
अपनी मोहब्बत लुट जाने का इंतजार नहीँ करते

दिल के टूट के बिखर जाने का इंतजार नहीँ करते


तुफान भी आता है समुंदर को कह कर यारोँ


रेत से बने घरोँ के बचने का इंतजार नहीँ करते

Sunday 1 December 2013

वादा बखूबी निभाया उन्होनेँ
अश्क नहीँ बहने दिया उन्होनेँ
दिल को रुलाने का सोच रहे 

पलकोँ पे बिठाया जिन्हेँ हमने
इजाजत मिलेगी तो हम सो जाऐँगे
सपनोँ मेँ मुलाकात हम कर जाऐँगे
आँखोँ को इंतजार उनके दीदार का
मिल गये तो सपने अपने हो जाऐँगे
 
सर्दी की सुबह अलसाई सी
चाय की खुशबू बौराई सी
कप करते आपस मेँ बातेँ
माली चला आता बगीचे मेँ
थैली मेँ छोटी थैली डालती
राशन का लिस्ट गुनगुनाती
पूजा के फूल बटोरटी माँ
रंगीन परदे पे नाचती रंगोली
स्कूटर को चमकाते पापा
काश वो बचपन लौट आए
एक वो sunday फिर आए

Saturday 30 November 2013

दिमाग का बुखार साँसोँ मेँ घुलता हुआ दिल मेँ उतर गया

एक खुबसूरत चेहरा देखते देखते बस से उतर गया;-)
क्या जहान है तेरा रवीश 

चेहरे खुलेआम पर असली सा कोई नहीँ दिखता


मोहब्बत सबको है तड़पता कोई नहीँ दिखता


उठी सब दुनिया पर जगा सा कोई नहीँ दिखता


साथ सब नजरोँ मेँ उतरता कोई नहीँ दिखता

Friday 29 November 2013

रात भर नीँद टूटती रही मेरी
चादर समेटता रहा पैरोँ तले
सोच को लकवा सा मार गया
चाँद खिड़की से झाँकता गया
तारे टूटते गिरते आसमान से
जमीन खिसकती रही हाथोँ से
दिल खाली खाली सा हो गया

..............................
आँखोँ मेँ इंतजार एक सुबह का
चाँद गायब सा होने था लगा
सूरज चढता आसमाँ मेँ देखा
किरणेँ छन गयी खिड़की से
आलसी दिल को उर्जा दे गयी
हाथोँ मेँ आ गया चाय का कप
चाय की खूशबु साँसोँ मेँ घुली
रिश्ते तो तारोँ जैसे टूट गये
मन का रवीश जग गया

Thursday 28 November 2013

खुदा तेरे शहर मेँ रहने के लिये जगह नहीँ मिली
हम अब तेरे हीँ शहर मेँ छतोँ के दलाल बन गये हैँ



 
 





बहुत चाह थी किसी के इश्क मेँ डूब जाने की खुदा
हम अब तेरे हीँ जहान मेँ रिश्तोँ के दलाल बन गये हैँ
दुनिया के भीड़ मेँ तू तन्हा अकेला
एक तू अकेला एक तेरा दिल अकेला
मिलने आया तू दुनिया से अकेला
जाएगा भी तू इस दुनिया से अकेला
क्यूँ किसके लिये कहाँ ये राज छुपा रखा है
कब तलक यूँ बेटी का कातिल राज रखा है
इस दुनिया मेँ खुद को कातिल बना रखा है
जग कानून की खरीद का मन बना रखा है
अपने बगिया के फूल का खुन छुपा रखा है
पछतावे मेँ जीने का खुद मन बना रखा है..........................................
एक तू बेवफा एक तेरी अदा मेँ बेवफाई
एक तू जुदा एक तेरे वो जाने मेँ जुदाई
दिल आराम से अकेले मेँ चैन से टूटा रहा था
जाने मेरा नाम लेके ये किसने आवाज लगायी

Tuesday 26 November 2013

अजीब सी थकान है दिल मेँ मेरे

बेरुखी सी दुनिया है आसपास मेरे


गीत से संगीत कुछ खफा है मेरे


जी करता सो जाऊँ रात भर के लिये


सितारे टूट गये है आसमाँ से मेरे
क्या शहर बनाया तूने सुन खुदा के बंदे

कुत्तोँ को भी यहाँ पनाह नहीँ मिलती 


हर पल कुचला जाता यहाँ एक कुत्ता


गाड़ियोँ की भीड़ से घबराया हर कुत्ता


तेरे घर के सीढियोँ मेँ छिपा हर कुत्ता


पार्क जाकर राहत की साँस लेता कुत्ता


कुचला गया मेरे पैरोँ तले एक कुत्ता


किस्मत अपनी जगा गया वो एक कुत्ता

मैँने गाड़ी मेँ बैठाया डरा सा वो कुत्ता


अब मेरे घर पर रहता है वो कुत्ता


दूध बिस्कुट खाता रोज है वो कुत्ता


ठाठ से मेरे संग टीवी देखता कुत्ता


सोचता हूँ देख के वो मेरा पालतू कत्ता


आँखो से वही सवाल पुछता वो कुत्ता....



क्या शहर बनाया तूने सुन खुदा के बंदे


कुत्तोँ को भी यहाँ पनाह नहीँ मिलती 

Monday 25 November 2013

सारा जमाना सो जाता है 
पर तुम क्यूँ नहीं सोते
जन्मो से देख रही इन 
पलकों को बिना झपके
माँ की लोरी तुम्हे सुलाती थी 
जब तुम नींद के लिए रोते
जवानी में फिर क्या हुआ 
कभी देखा नहीं सोते

जिसने स्वाभिमान को कुचला वो भी हैं सोते
जिसने प्यार में धोखा दिया वो भी हैं सोते
जिसने तुम पर ऊँगली उठाई वो भी हैं सोते
जिसने तुम्हारी पहचान चुराई वो भी हैं सोते

फिर क्यूँ हो सिर्फ तुम जागते
बैचैन हैरान थोडा परेशान होते 
आओ तुम्हे नींद के आगोश में भर दूँ 
आखें तुम्हारी थक गयी हैं 
उन्हें थोडा आराम कर दूँ 
गोद में मेरे सर रख कर 
जब तुम पलकों को झुकाओगे
सदियों कि नींद कि प्यास से राहत पाओगे

जीने की तमन्ना है तो मर मर के मत जी 

उठ हाथ फैला सूरज को पकड़ माथे लगा

मन में लिए उमंग उठा कर कलम हाँथ में 

बदल डाल रोती हुई किस्मत को 

बदल डाल हर आँसू को मोटी बना

नहीं अब सुख के पल दूर हाथ बढ़ा 

और कलम उठा नासूर कि स्याही से 

शब्दों के जाल बना ज़माने को दिखा

लटका हुआ है दिल मेरा तुम्हारी कान के झुमके से

होंठों से लगा लो तो ज़रा आखों से जुल्फें हटा लूँ

मर जाएंगे जिस दिन आप पनाहो में बुलाओगे

झुमके को चूमा जिस पल दिल में उतर जाओगे

आँखें बंद किये हमारी प्यास बुझेगी बरसों की 

पूरी कायनात होगी गवाह आत्माओं को मिलन की


वक्त तुझसे एक छोटी सी गुजारिश है

थोड़ा सा वक्त मिल जाये ये ख्वाहिश है


दुनिया मेँ लगी जो ये तेरी नुमाइश है


अपना तमाशा भी देख लूँ ये ख्वाहिश है
बेदर्द दुनिया मेँ अक्सर रस्मोँ रिवाजोँ को निभते देखा है

तेरी डोली उठते देखा था कल मेरी जान फूलोँ की


आज अपने जनाजे को उन्हीँ फूलोँ से सजते देखा है
दिल को बहुत रगड़ा खैनी मेँ चुने की तरह हमने

बेपनाह मोहब्बत एक बीड़ी के फूँक मेँ फना हुयी


थर्रा की बोतल पे नजर मत डाल ऐ जालिम सुन


वो तो मौत के पहले गंगाजल की जगह रखा है
गोल गोल गप्पे सजे थे ठेल

गोल गोल गाल पहुँचे ठेल 

एक ने बढाया अपना हाथ

कमल फूल लगाए बालोँ मेँ

झाडू लिये अपने हाथ मेँ

हाथी सा था बदन उनका

साईकिल पर बच्चे साथ

लालटेन जल रहा तेल का

सबके पास मुद्दे हीँ मुद्दे थे
गोल गप्पे सारे थे हैरान