कोई मुझे बताये
मुझे किसका इंतज़ार है
जिससे मिलने को मन बेक़रार है
इंतज़ार कल भी था आज भी है
आँखों में चूभन कल भी थी आज भी है
क्योँ खत्म नहीं होता यह इंतज़ार
सुबह से शाम का
और शाम से सुबह के होने का इंतज़ार
लेकिन इस इंतज़ार में भी
है एक नई उम्मीद सी छाई
उम्मीद के साथ
चिंता की नई लकीर भी गहराई
इन चिंता की लकीर में
कोई मुझे बताये
मुझे किसका इंतज़ार है
जिससे मिलने को मन बेक़रार है
लेकिन इस इंतज़ार में भी
है एक नई ख़ुशी सी छाई
ख़ुशी …ऱात की काली चादर के उड़ने की
और सुबह की नरम धुप की चादर के बिछ जाने की
इन चादरों के बदलने में
कोई मुझे बताये
मुझे किसका इंतज़ार है
जिससे मिलने को मन बेक़रार है