Thursday 31 October 2013

शौक नहीँ मुझे पीने का फिर भी पिलाये जाती हो

पीता हूँ मैँ पर तुम क्यूँ होश गवायेँ जाती हो
रात ख्वाबोँ मेँ तुम यूँ ना आया करो

यूँ अकेले मेँ बातेँ कर के ना जाया करो


चाँद तो यूँ हीँ जला बैठा है सूरज से


अपने नूर से उसे रात मेँ ना जलाया करो

Wednesday 30 October 2013

तुमसे हीँ जीवन की पूर्णता 

तो कैसे भला तुम पूर्ण 


और कैसे भला मैँ पूर्ण 

तुमसे पूर्ण हमारा जीवन 


तो कैसे भला तुम जीवित


और कैसे भला मैँ जीवित

Tuesday 29 October 2013

उसने जाते वक्त कहा "तुम्हारे जैसे लाखोँ मिल जायेँगे "

मैनेँ मुस्कुरा के जवाब दिया " लाखोँ की भीड़ मेँ तुम्हेँ मुझ जैसा हीँ चाहिये , क्यूँ ?
रिश्ते को तुमने यूँ हीँ लिया 

तेरा मेरा दर्द बस रह गया


ना मनाने को कुछ रह गया


ना निभाने को कुछ रह गया


तुम खुश रहे अपने जहान मेँ

मैँनेँ कब्र मेँ ठिकाना ढुँढ लिया

सब काट रहेँ हैँ


कोई आलू काट रहा है

कोई प्याज काट रहा है

कोई टमाटर काट रहा है



कहीँ अफसर काट रहे हैँ

कहीँ मुलाजिम काट रहे हैँ

कहीँ दुकानदार काट रहे हैँ



कभी नेताजी काट रहे हैँ

कभी बेटाजी काट रहे हैँ

कभी पापाजी काट रहे हैँ

कभी रिश्ते काट रहे हैँ

कभी अजनबी काट रहे हैँ

कभी जाननेवाले काट रहे हैँ

कोई समय को काट रहा है

कोई वोट को काट रहा है

कोई देश को काट रहा है

सब काट रहे हैँ 

सब काट रहे हैँ
वक्त भी कम पड़ जाता है 
दिल भी नहीँ भर पाता है
मुलाकात शुरु होती नहीँ
सारा शहर जल जाता है

दोस्त पूछते तेरे बारे मेँ
तो खामोश हीँ रहता हूँ
पर जाने कैसे दुश्मनोँ 

को सब पता चल जाता है
ढूँढते थे कभी जिनसे हम मिलने के बहाने, ढूँढ रहे  आज वो दूर चले जाने के बहाने
जीने की कोई चाह बची नहीँ अब यारोँ, धड़कना सिख लिया दिल ने धड़कने के बहाने

Sunday 27 October 2013

जिँदगी की कश्मकश मेँ वक्त भी यूँ हमारा हो ना सका
कुछ देखा ख्वाब ऐसा जो यूँ बस पूरा हो ना सका
शिकवा क्यूँ करेँ अपनोँ से जब साँस भी है उधार की
पत्थरोँ के बाजार मेँ अपना दिल भी यारोँ बिक ना सका
जब भी निकलते हैँ तेरी गली से
दो चाँद नजर आ जाता है 

एक से रोशन दुसरा थोड़ा 
बदनाम सा हो जाता है