शौक नहीँ मुझे पीने का फिर भी पिलाये जाती हो पीता हूँ मैँ पर तुम क्यूँ होश गवायेँ जाती हो
रात ख्वाबोँ मेँ तुम यूँ ना आया करो यूँ अकेले मेँ बातेँ कर के नाजाया करो चाँद तो यूँ हीँ जला बैठा है सूरज से अपने नूर से उसे रात मेँ ना जलाया करो
Wednesday 30 October 2013
तुमसे हीँ जीवन की पूर्णता तो कैसे भला तुम पूर्ण और कैसे भला मैँ पूर्ण
तुमसे पूर्ण हमारा जीवन तो कैसे भला तुम जीवित और कैसे भला मैँ जीवित
Tuesday 29 October 2013
उसने जाते वक्त कहा "तुम्हारे जैसे लाखोँ मिल जायेँगे " मैनेँ मुस्कुरा के जवाब दिया " लाखोँ की भीड़ मेँ तुम्हेँ मुझ जैसा हीँ चाहिये , क्यूँ ?
रिश्ते को तुमने यूँ हीँ लिया तेरा मेरा दर्द बस रह गया ना मनाने को कुछ रह गया ना निभाने को कुछ रह गया तुम खुश रहे अपने जहान मेँ मैँनेँ कब्र मेँ ठिकाना ढुँढ लिया
सब काट रहेँ हैँ
कोई आलू काट रहा है
कोई प्याज काट रहा है
कोई टमाटर काट रहा है
कहीँ अफसर काट रहे हैँ
कहीँ मुलाजिम काट रहे हैँ
कहीँ दुकानदार काट रहे हैँ
कभी नेताजी काट रहे हैँ
कभी बेटाजी काट रहे हैँ
कभी पापाजी काट रहे हैँ
कभी रिश्ते काट रहे हैँ
कभी अजनबी काट रहे हैँ
कभी जाननेवाले काट रहे हैँ
कोई समय को काट रहा है
कोई वोट को काट रहा है
कोई देश को काट रहा है
सब काट रहे हैँ
सब काट रहे हैँ
वक्त भी कम पड़ जाता है दिल भी नहीँ भर पाता है मुलाकात शुरु होती नहीँ सारा शहर जल जाता है
दोस्त पूछते तेरे बारे मेँ तो खामोश हीँ रहता हूँ पर जाने कैसे दुश्मनोँ को सब पता चल जाता है
ढूँढते थे कभी जिनसे हम मिलने के बहाने, ढूँढ रहे आज वो दूर चले जाने के बहाने जीने की कोई चाह बची नहीँ अब यारोँ, धड़कना सिख लिया दिल ने धड़कने के बहाने
Sunday 27 October 2013
जिँदगी की कश्मकश मेँ वक्त भी यूँ हमारा हो ना सका कुछ देखा ख्वाब ऐसा जो यूँ बस पूरा हो ना सका शिकवा क्यूँ करेँ अपनोँ से जब साँस भी है उधार की पत्थरोँ के बाजार मेँ अपना दिल भी यारोँ बिक ना सका
जब भी निकलते हैँ तेरी गली से दो चाँद नजर आ जाता है एक से रोशन दुसरा थोड़ा बदनाम सा हो जाता है