तुम्हारे दिये दुख को तकिये के नीचे रख सोता हूँ
आँसूओँ से चादर को भीगो कर के ओढ सोता हूँ
साँसोँ को पंखे से लटका कर के सोता हूँ
अपनी सुबह जाने कब आएगी
दुख का कर्ज चुकाने के सपनोँ के साथ सोता हूँ
आँसूओँ से चादर को भीगो कर के ओढ सोता हूँ
साँसोँ को पंखे से लटका कर के सोता हूँ
अपनी सुबह जाने कब आएगी
दुख का कर्ज चुकाने के सपनोँ के साथ सोता हूँ