Saturday 19 April 2014

क्यूँ मन मेरा वापस जाने को उतावला है
अपने बचपन की ओर खिँचा चला जा रहा है
कुछ तो छूटा है उस बचपन मेँ उसका
आज मेरी ना सुनता नजर आ रहा है
कोई तो है जो आवाज देकर बुला रहा है
कुछ अधूरा ख्वाब पूरा करने जा रहा है
अब वो भी हार गया अपना दिल अपना
शायद अपनी जीत की ओर बढा जा रहा है
विश्वास अचल उसका हुआ जा रहा है
मेरा मन तुम्हारे मन से मिलने आ रहा है

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