Tuesday 17 June 2014

तेरी यादोँ को समेटे आज सदियाँ गुजर गयीँ


तेरी बातोँ को सुने आज घड़ियाँ गुजर गयीँ


एक आहट सी सुनी जो मेरी रुह नेँ अकेले मेँ


मेरे सामने से बचपन की वो गलियाँ गुजर गयीँ

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