रविश चंद्र "भारद्वाज"
Tuesday 17 June 2014
जहान मेँ इमारतेँ ऊँची और सोच नीची हो गयी हैँ
गलियोँ की खूबसुरती काँच की खिड़कियोँ मेँ कैद हो गयीँ हैँ.....
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