रविश चंद्र "भारद्वाज"
Saturday 23 November 2013
अपनी गिली जुल्फोँ को झटका ना करो
उनकी साये मेँ दिल को पनाह मिलती है
गिरती हैँ जो ओस की बुँदे चेहरे पर
सोयी हुई साँसो मेँ बस आग लगती है
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