सफर बड़ा सुहाना
यादोँ का फसाना
बस की रफतार
दो चार पड़ाव
एक पड़ाव पे वो भी आये
बैठ गये बगल मेँ हमारे
पुछने की क्या जरुरत थी
टिकट उनकी सीट उनकी
आधा चाँद हमारे साथ था
रात गुजर जाए आराम से
सोचते हुये आँख लग गयी
चाँद छुप गया
मेरा पड़ाव निकल गया
उनका पड़ाव मेरा पड़ाव
यादोँ का फसाना
बस की रफतार
दो चार पड़ाव
एक पड़ाव पे वो भी आये
बैठ गये बगल मेँ हमारे
पुछने की क्या जरुरत थी
टिकट उनकी सीट उनकी
आधा चाँद हमारे साथ था
रात गुजर जाए आराम से
सोचते हुये आँख लग गयी
चाँद छुप गया
मेरा पड़ाव निकल गया
उनका पड़ाव मेरा पड़ाव
No comments:
Post a Comment