Thursday 5 December 2013

विक्षिप्त सा वो मेरा आकाश

निराश रोते मेरे वो तारे


मुरझा गया वो मेरा चाँद


खो गयी वो तेरी मेरी रात


सुबह का सूरज भी बेचैन


किरणेँ गिरती धरती पर


छाये खोते बाग के पेँड़


जलती झुलसती ये धरती



शायद कुछ बात है

छुटता कोई हाथ है

No comments:

Post a Comment