Tuesday 29 April 2014

चाय नहीं पिलाता है पर कप धोने जाता है

जाने वो  किसको क्या कैसे पिलाता है

ऐसा क्यों होता  है मुझे समझ ना आता है

जाने वो क्यों बार बार धोने जाता है 

जब भी आऊँ तुम्हारे घर मन खिल जाता है

अपने हाथों से चाय बनाने का मजा आता है

अकेले मेरा  मन क्यों नहीं लग पाता है

तुम्हारे चेहरे को याद कर रो रो जाता है 

पर एक बात मेरे दिमाग में सेट नहीं हो पाता है

चाय नहीं पिलाता है पर कप धोने जाता है

जाने वो  किसको क्या कैसे पिलाता है

ऐसा क्यों होता  है मुझे समझ ना आता है

जाने वो क्यों बार बार धोने जाता है 

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