Saturday 3 May 2014

किसका सब्र करेँ अब किसकी खैर मनायेँ


जमीर बिक रहा सरेआम बाजार मेँ


खुशियाँ दहलीज पे आते अब शरमायेँ


चंद सिक्कोँ से क्या बच्चोँ को खिलायेँ


बिकते बेटे तेरे कोड़ियोँ की भाव मेँ


खून के रिश्ते हम अब कैसे निभायेँ


हार कर लौट माँ तेरे चरण मेँ हीँ आयेँ


दे आशीष अपने भटके हुये बच्चोँ को


शायद हम भी आजाद भगत कहलायेँ


तुझसे हैँ जन्मेँ तुझमेँ ही मिल जायेँ

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