Sunday 27 October 2013

जिँदगी की कश्मकश मेँ वक्त भी यूँ हमारा हो ना सका
कुछ देखा ख्वाब ऐसा जो यूँ बस पूरा हो ना सका
शिकवा क्यूँ करेँ अपनोँ से जब साँस भी है उधार की
पत्थरोँ के बाजार मेँ अपना दिल भी यारोँ बिक ना सका

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