Tuesday 24 December 2013

भीड़  में  अकेला  राहगीर  जा  रहा  था
भीड़  थी बहुत पर  वो  अकेला
यूँ  तो  साथ  दुनिया  चल  रही  थी
वो  इस  लोगो  की  भीड़  में  पर  अकेला

उसमें विस्वास तो  इतना  भरा  था
भीड़  में  अकेला  गर्दन  उठा  कर  चल  रहा  था
हवा  ने  सोचा  क्यो  ना  मैं  विस्वास  को  दिगाऊँ
मेरे  अस्तित्व  को  दर्शाऊँ
झोंका अपना जो मैंने  हिलाया
भीड़ तितरी भीड़  बीतरी
लोगो  को  दिशा  ढूंढते  पाया
पर  वो  अटल  अमित  शांत  अडिग
राह  में  चलता  गया

मैं  हवा  हुई  खूब  हैरान और  परेशान
मेरी  ताकत  पर  सब  सर  झुकाते  है
मेरे  क्रोध  पर  सब  हिल  जातें  हैं
हाँ  हैं  मुझे  घमंड मुझपे
विनाशकारी  शक्तियो  से  परिपूर्ण  मैं
हाँ  मुझ  में  है  ताकत  राहें  बदलने  मिटाने  की
मेरे  दम  पर  दुनिया  सारी  चलती  है
फिर  इस  राहगीर  की  गर्दन  क्योँ
आकाश  सी  ऊँची  और  विशाल  दिखती  है

राहगीर  सुन  सारी  बातें  मुस्कराया
अपनी  राह  पर  कदम  बढ़ाया
बोला  मुझमें  ना  घमंड  है
ना  मुझमें  शक्ति  अपार  है
मुझमें  सिर्फ  जीवन  जीने  की  प्यास
कुछ  कर  गुजरने  की आस
और  मेरे  इस  भीड़  पर  विश्वास  है
मैं  इस  भीड़  में  अकेला  नहीं
पूरी  कायनात  मेरे  साथ  है
पत्तों  की  सरसराहट
पथ का  धुल
मेरी  सोच  मेरा  व्यवहार
और  अपनों  का  प्यार
दिशा  दिखाती  ये सूर्य  के  रोशनी
और  मेरे  जीत  के  मंजिल  के  नजदीक
आने की  खुश्बू  भीनी  भीनी

इस  भीड़  में  लोग भले हीं अलग अलग लगतें  हैं
पर  उसी  भीड़  के  कदम  मेरे साथ  चलतें  है
पर  उसी  भीड़  के  कदम  मेरे साथ  चलतें  है 

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