तंग गलियाँ हैँ आज भी जहाँ मिलते थे चूरन बतासे
महकते बागिचे आज भी जहाँ खिलते थे बसंती फूल
माँ की पुकार आज भी जहाँ पकते थे आलू पराठे
मिट्टी की खूशबु आज भी जहाँ उड़ाते थे पैरोँ से धूल
तो चलो एक बार लौट चलेँ अपने गलियोँ मेँ खेलने
बागिचे मेँ जरा सोने
पराठे को जरा चखने
धूल को फिर से उड़ाने
जिंदगी के मायने समझने !
महकते बागिचे आज भी जहाँ खिलते थे बसंती फूल
माँ की पुकार आज भी जहाँ पकते थे आलू पराठे
मिट्टी की खूशबु आज भी जहाँ उड़ाते थे पैरोँ से धूल
तो चलो एक बार लौट चलेँ अपने गलियोँ मेँ खेलने
बागिचे मेँ जरा सोने
पराठे को जरा चखने
धूल को फिर से उड़ाने
जिंदगी के मायने समझने !
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