Monday 7 April 2014

कैसे हो जाऊँ एक पल भी तुमसे खफा ? 
तुम तो मेरी हर नवजीवन का प्रकाश हो । 
जब भी मुझे अँधेरे ने घेरा है , तुम्हारी रोशनी ने मुझे रास्ता दिखाया है ।
आज जो मैँ थोड़ा प्रकाशमान हूँ उसका सूर्य तो तुम्हीँ हो प्रिय ।
मेरे मन मेँ उठी मेरी आशा की किरण तुम हीँ हो । 
मेरे हर जीवन का आधार तुम हीँ हो । 
जग चाहे जो समझे मेरी हर धड़कन का अटूट हिस्सा तुम हीँ हो । 
कभी टूट जाऊँ तो समझ लेना कि मैँ नहीँ टूटा बल्कि तुम्हारी रोशनी थोड़ी कम हो गयी है । 

फिर माँग लेना मुझसे थोड़ी सी वो तुम्हारी रोशनी हाथोँ को फैलाये । 
आ जाऊँगा अपनी रोशनी के पास थोड़ा जीने तुम्हारे दिल मेँ ।

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