Friday 29 November 2013

रात भर नीँद टूटती रही मेरी
चादर समेटता रहा पैरोँ तले
सोच को लकवा सा मार गया
चाँद खिड़की से झाँकता गया
तारे टूटते गिरते आसमान से
जमीन खिसकती रही हाथोँ से
दिल खाली खाली सा हो गया

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आँखोँ मेँ इंतजार एक सुबह का
चाँद गायब सा होने था लगा
सूरज चढता आसमाँ मेँ देखा
किरणेँ छन गयी खिड़की से
आलसी दिल को उर्जा दे गयी
हाथोँ मेँ आ गया चाय का कप
चाय की खूशबु साँसोँ मेँ घुली
रिश्ते तो तारोँ जैसे टूट गये
मन का रवीश जग गया

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