रविश चंद्र "भारद्वाज"
Thursday 28 November 2013
खुदा तेरे शहर मेँ रहने के लिये जगह नहीँ मिली
हम अब तेरे हीँ शहर मेँ छतोँ के दलाल बन गये हैँ
बहुत चाह थी किसी के इश्क मेँ डूब जाने की खुदा
हम अब तेरे हीँ जहान मेँ रिश्तोँ के दलाल बन गये हैँ
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