Thursday 14 November 2013

आलस बटोरे अंग अंग मे
अँगड़ाई लेती मेरी बाँहोँ मेँ
खिड़की से छुपके झाँकती
चिड़ियोँ के साथ खेलती
ठंडी हवाओँ से जुझती
रात की चादर हटाती
पलकोँ से बातेँ बनाती
गुलाबी होठोँ से चुमती
मेरी सुबह तुम मेरी सुबह