Monday 11 November 2013

रुकने की तबीयत मत रखो बस बहते हीँ जाओ यारोँ

सूरज जो पड़ जाये फीका


मन का दीप जलाओ यारोँ 


क्यूँ रखते हो आस किसी से


जीवन मेँ आस जगाओ यारोँ


माना कि अपनोँ ने छोड़ दिया


खुदी का साथ निभाओ यारोँ




जल को जो है मिलता पत्थर


पर काट काट वो बहता है


काँटो के बीच रहता गुलाब


खिल खिल के हीँ वो रहता है


क्यूँ कैद हो इस जीवन मेँ


आजादी अपनी मनाओँ यारोँ


रुकने की तबीयत मत रखो बस बहते हीँ जाओ यारोँ