Monday 11 November 2013

चार रोटी


आज दिल के रसोई मेँ चार रोटी बनी


पहली वाली खा ली


दुसरी बच्चोँ को खिला दी


तीसरी से उधार चुकाया


चौथी नेताओँ नेँ चुराया

अगले दिन फिर रोटी बनेगी


वही बंटवारा फिर से होगा

बस तय कर लिया एक बात

नेताओँ को मिलेगी मेरी लात

अपनी रोटी होगी अब मेरे हाथ

आजाद होगी अब अपनी रोटी

घर की छोटी प्यारी अपनी रोटी

भारत माँ की दुलारी अपनी रोटी

सारे जहान से अच्छी अपनी रोटी