रविश चंद्र "भारद्वाज"
Monday 11 November 2013
कुछ बात अधुरी जो रह गयी , वो ख्वाब मेँ हीँ पूरे हुये
यूँ दुआ कबूल हुयी अपनी , हम नीँद मेँ भी खोये रहे
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