यादोँ की गठरी
कल बहुत डर सा लगा
बैठे थे अकेले मेँ चुप से
हिम्मत कर आखिर खोली
यादोँ की गठरी चुप से
टूटा हुआ काँच चुभ गया
दिल तक को कुरेद गया
वो आधी पेँसिल का टुकड़ा
मन मेँ छेद करता गया
टिफिन निकला मुस्कुराता
वाटर बोतल छलक गया
पूरी कमीज गिला गिला कर
आत्मा की प्यास बुझा गया
स्कूल बैग था बड़ा उदास
आ रही अब भी उसमेँ से
पराठे की खुशबू वो खास
माँ की याद दिला गया
आलू भुजिये के तेल से सने
कापियोँ के फटे पन्ने देख के
डर सा लगा सोच कर के
होमवर्क अभी थोड़ा रह गया
कल बहुत डर सा लगा
बैठे थे अकेले मेँ चुप से
हिम्मत कर आखिर खोली
यादोँ की गठरी चुप से
टूटा हुआ काँच चुभ गया
दिल तक को कुरेद गया
वो आधी पेँसिल का टुकड़ा
मन मेँ छेद करता गया
टिफिन निकला मुस्कुराता
वाटर बोतल छलक गया
पूरी कमीज गिला गिला कर
आत्मा की प्यास बुझा गया
स्कूल बैग था बड़ा उदास
आ रही अब भी उसमेँ से
पराठे की खुशबू वो खास
माँ की याद दिला गया
आलू भुजिये के तेल से सने
कापियोँ के फटे पन्ने देख के
डर सा लगा सोच कर के
होमवर्क अभी थोड़ा रह गया